अल-हदीद

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सूरा अल-हदीद (इंग्लिश: Al-Hadid) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 57 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 29 आयतें हैं।

नाम[संपादित करें]

सूरा अल-हदीद[1]या सूरा अल्-ह़दीद[2] आयत 25 के वाक्यांश , "और लोहा (अल-हदीद) उतारा" से उद्धृत है।

अवतरणकाल[संपादित करें]

मदनी सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत के पश्चात अवतरित हुई।

इसके मदनी सूरा होने में सब एक मत हैं और इसकी वार्ताओं पर विचार करने से आभासित होता है कि सम्भवतः यह उहुद के युद्ध और हुदैबिया की सन्धि के मध्य किसी समय अवतरित हुई है। यह वह समय था जब इस्लाम को अपने अनुयायियों से केवल प्राण की कुरबानी ही की ज़रूरत न थी बल्कि धन की कुरबानी की भी ज़रूरत थी, और इस सूरा में इसी कुरबानी के लिए ज़ोरदार अपील की गई है। इस अनुमान की आयत 10 से तदधिक पुष्टि होती है।

विषय और वार्ताएँ[संपादित करें]

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसका विषय अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करने पर उभारना है। यह सूरा इस उद्देश्य के लिए अवतरित की गई थी कि मुसलमानों को विशेष रूप से धन की कुरबानियों के लिए तैयार किया जाए और यह बात उनके मन में बिठाई जाए कि ईमान (की मूल आत्मा और वास्तविकता) अल्लाह और उसके धर्म के लिए विशुद्ध-हृदय होना है। जो व्यक्ति इस आत्मा से वंचित है और ईश्वर और उसके धर्म के मुक़ाबले में अपने प्राण, धन और अपने हित को अधिक प्रिय समझे, उसके ईमान की स्वीकृति खोखली है। इस उद्देश्य के लिए सबसे पहले अल्लाह के गुण वर्णित किए गए है ताकि सुननेवालों को भली प्रकार यह एहसास हो जाए कि इस महान सत्ता की ओर से उनको सम्बोधित किया जा रहा है।

मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी के अनुसार इस सूरा में निम्नलिखित वार्ताएँ क्रमशः प्रस्तुत की गई हैं:

(1) ईमान को अनिवार्यतः यह अपेक्षित है कि आदमी ईश्वर के मार्ग में माल ख़र्च करने से पहलू न बचाए।

(2) ईश्वर के मार्ग में प्राण और धन की कुरबानी देना यद्यपि हर हाल में अपना मूल्य रखता है, किन्तु इन क़ुरबानियों का मूल्य अवसर की गम्भीरता की दृष्टि से निश्चित होता है। जो लोग इस्लाम की कमज़ोरी की स्थिति में उसे उच्च करने के लिए जाने लड़ाएँ और माल ख़र्च करें उनके दर्जे को वे लोग नहीं पहुँच सकते जो इस्लाम को प्रभुत्वशाली होने की स्थिति में उसकी तदधिक उन्नति के लिए जान और माल कुरबान करें।

(3) सत्यमार्ग में जो माल भी ख़र्च किया जाए वह अल्लाह के ज़िम्मा ऋण है , अल्लाह उसे न केवल् यह कि कई गुना बढ़ा-चढाकर लौटाएगा बल्कि अपनी ओर से और अधिक प्रतिदान भी प्रदान करेगा।

(4) परलोक में प्रकाश उन्हीं ईमानवालों के हिस्से में आएगा जिन्होंने ईश्वरीय मार्ग में अपना माल ख़र्च किया हो। रहे वे कपटाचारी जो संसार में अपने ही हित को देखते रहे, परलोक में उनको ईमानवालों से विलग कर दिया जाएगा, वे प्रकाश से वंचित होंगे और उनका परिणाम वही होगा जो काफ़िरों का होगा।

(5) मुसलमानों को उन किताबवालों की तरह नहीं हो जाना चाहिए जिनके हृदय दीर्घकाल की बेसुधियों के कारण पत्थर हो गए। वह ईमानवाला ही क्या जिसका हृदय ईश्वर के स्मरण से न पिघले और उसके अवतरित किए हुए सत्य के आगे न झुके।

(6) अल्लाह की दृष्टि में सत्यवान (सिद्दीक़) और सहीद केवल वे ईमानवाले हैं जो अपना धन किसी दिखावे की भावना के बिना सच्चे दिल से उसकी राह में खर्च करते हैं।

(7) सांसारिक जीवन केवल थोड़े दिनों की बहार और एक धोखे की सामग्री है। यहाँ की साज- सज्जा और यहाँ का धन- दौलत , जिसमें लोग एक दूसरे से बढ़ जाने की कोशिश करते हैं, सब कुछ अस्थायी है। स्थायी जीवन वास्तव में पारलौकिक जीवन है। तुम्हें एक- दूसरे से आगे निकलने का प्रयास करना तो यह प्रयास जन्नत की ओर दौड़ने में करो।

(8) संसार में सुख तथा दुःख जो भी होता है अल्लाह के पहले से लिखे हुए फैसले के अनुसार होता है। ईमानवालों का चरित्र यह होना चाहिए कि दुःख या कष्ट आए तो साहस न छोड़ बैठें, और सुख आए तो इतराने न लगें।

(9) अल्लाह ने अपने रसूल खुली- खुली निशानियों और न्याय तुला के साथ भेजे, ताकि लोग न्याय पर स्थिर रह सकें, और इसके साथ लोहा भी उतारा ताकि सत्य को स्थापित करने और असत्य का सिर नीचा करने के लिए शक्ति का प्रयोग किया जाए। इस तरह अल्लाह यह देखना चाहता है कि मनुष्यों में से कौन लोग ऐसे निकलते हैं जो उसके धर्म के समर्थन और उसकी सहायता के लिए खड़े हो और उसके लिए जान लड़ा दें।

(10) अल्लाह की ओर से पहले पैग़म्बर आते रहे जिनके आमंत्रण से कुछ लोगों ने सीधा रास्ता अपनाया, किन्तु अधिकतर अवज्ञाकारी बने रहे। फिर ईसा (अलै.) आए जिनकी शिक्षा से लोगों में बहुत- से नैतिक गुण पैदा हुए किन्तु उनके समुदाय ने संन्यास की नई रीती अपनाई। अब सर्वोच्च अल्लाह ने मुहम्मद (सल्ल.) को भेजा है। उनपर जो लोग ईमान लाएँगे, अल्लाह उनको अपनी दयालुता का दोहरा हिस्सा देगा और उनहें (सीधी राह दिखानेवाला) प्रकाश प्रदान करेगा। किताबवाले चाहे अपने आपको अल्लाह के उदार-दान का ठेकेदार मझते किन्तु अल्लाह का उदार- दान उसके अपने ही हाथ में है, उसे अधिकार है जिसे चाहे अपने उदार- दान से सम्पन्न करे।

सुरह "अल-हदीद का अनुवाद[संपादित करें]

बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी "मुहम्मद अहमद" [3] ने किया।

बाहरी कडियाँ[संपादित करें]

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें Al-Hadid 57:1

पिछला सूरा:
अल-वाक़िया
क़ुरआन अगला सूरा:
अल-मुजादिला
सूरा 57 - अल-हदीद

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सन्दर्भ:[संपादित करें]

  1. सूरा अर-रहमान, (अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ), भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन - संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 807 से.
  2. "सूरा अल्-वाक़िआ़ का अनुवाद (किंग फ़हद प्रेस)". https://quranenc.com. मूल से 22 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)
  3. "Al-Hadid सूरा का अनुवाद". http://tanzil.net. मूल से 25 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]